सिया की खोज में भटक रहे वन वन श्री राम बिखरे सिय केआभूषण देख नेत्र सजल और सूखे प्राण लखन समक्ष हो भावुक प्रभु कहें देखो सिय के हैं आभूषण नूपुर हाथ ले लखन कहे मैंने तो हरदम निरखे बस माता के चरण श्राप मुक्त कर कबंध को प्रभु कियो उद्धार दनु गंधर्व पाकर निज रूप कहें प्रभु लीला अपरम्पार प्रभु मिलन की राह निहारती अब तारो शबरी प्यारी नित सुंदर पुष्प बिछाए भक्ति धुन में रमी रहती है वह नारी आगे अब ऋष्यमुख पर्वत की राह वही बताएँगी सुग्रीव मिलन से माता मिलन की ये राह वही सुगम कर पाएँगी शबरी अश्रुधार से चरण पखारे नाथ,हरष हरष मुस्काते उन्हें देख रहे रघुनाथ चुन चुन श्रद्धा से मीठे बेर खिलाती जाए मुस्काते राम झूठे बैर खा जात पात का भेद मिटाएँ ऋष्यमुख पर्वत की ओर जाते प्रभु, सुग्रीव नाम ले खोजते जाएँ दूत वचन सुन, घबराकर सुग्रीव, राम जपते हनुमान की रट लगाएँ ब्राह्मण रूप धर केसरीनंदन तब प्रभु समक्ष हैं जाते राम लखन मित्र हैं या हैं शत्रु, बुद्धि से भेद जानना चाहते नाम अपना प्रभु मुख से सुन अचंभित पवनपुत्र हनुमान श्रीराम प्रभु मेरे, खड़े समक्ष, सुन कंठ में अटके जैसे उनके प्राण मेरे स्वामी मैं मूढ़ न पहचाना उन्हें, जिनकी करता हूँ नित अरदास प्रभु अंतर्यामी आप भूल करें क्षमा मेरी, मैं सियावर रामचंद्र का बस इक दास बिठा काँधे हनुमत चले सुग्रीव कंदरा की ओर,स श्रीराम लक्ष्मण के साथ भक्ति और प्रेम की अतुलनीय पराकाष्ठा हैं केसरीनंदन और उनके प्रभु श्री रघुनाथ ©Divya Joshi सिय की खोज में व्याकुल श्रीराम, कबंध को श्रापमुक्ति, शबरी और हनुमत मिलन सिया की खोज में भटक रहे वन वन श्री राम बिखरे सिय केआभूषण देख नेत्र सजल और सूखे प्राण लखन समक्ष हो भावुक प्रभु कहें देखो सिय के हैं आभूषण नूपुर हाथ ले लखन कहे मैंने तो हरदम निरखे बस माता के चरण