सोचता हूं कि अब जब इन्तेहाँ ही हो गयी हैं तो,
तुम्हारे हक़ में कुछ कह ही दूँ.....
बस यहीं कहना था कि...अगर तुमने मेरी कुछ निशानियां अब भी सहेज़ कर रखी हैं तो,,,
उन्हें किसी ठहरे हुये पानी में विसर्जित कर आओ.......
तुम्हें पता हैं ना मैं बह नही पता हूं।।।।।
यकीं मानो ये जो बोझिल एहसास तुम्हें घेरे रहते है ना,
इन सभी से तुम यकीनन निज़ात पा सकती हो
हा अगर तुम चाहो तो थोड़ी सी रुसवाईयाँ ज़रूर अपनी सिंघार दानी के आईने के पीछे चुपके से दफन कर दो,,,,,,,,, #Poetry#यादें