उम्मीदें ना छोड़ी हमने इरादों को डगमगाते देखा है जिस घर की बुनियाद हिल गई उसे भरभराते देखा है जिसे डांटा तक ना गया हो ग़लतियों की सजा पर बरखुरदार की आवाज़ पर..खुद को थरथराते देखा है मौसम को क्या कहें यहां कैसे ज़िंदगियाँ बदल रहीं बूंदों को गिरने से पहले बादलों को...घरघराते देखा है लहू का एक एक क़तरा मिला है इन खडी़ दीवारों में उसी दहलीज़ की ओर दरवाजों को...चरमराते देखा है आखिर सुकूनो चैन मिल ही गया मुझे यूं तबाह करके सोया.....नही कई रातों से नींदों को खटपटाते देखा है जो फक्र के साथ जिया कंधों को झुकाए बिना 'राही' उसे ही घर की ओर लौटते कदमों को लटपटाते देखा है ©kumar ramesh rahi #उम्मीदें #घर #नसीब #आवाज़ #मौसम #दहलीज़ #कदमों #सुकून #kumarrameshrahi #wait