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वो गई थी एक रतजगे में मेरी गली से उसको जाना वहीं


वो गई थी एक रतजगे में
मेरी गली से उसको जाना
वहीं से होकर वापस आना
मुझको लग गई थी भनक
जवानी की  मदहोशी में
मुझको लग गई एक सनक
उसकी एक झलक पाने को
थोड़ा सा बतियाने को
छत पर डेरा डाल दिया
वो रात ऐसी निर्दयी निकली
वो रतजगे से बाहर ना निकली
बिन पलक झपके हुई प्रभात
हमारे भी मजबूत होते थे जज़्बात
पर बहुत मुश्किल थे हालात
कहने पर हम रहे लज्जात 
यों जाग के काटी सारी रात।।

©Mohan Sardarshahari
  हमारे मजबूत जज़्बात

हमारे मजबूत जज़्बात #ज़िन्दगी

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