बहकने की उम्र है मेरी मैं तमीजों का इल्म क्यूँ रखूं । स्याह रातों का है मजा अपना मैं अपने साथ शमा क्यूँ रखूं । उधेड़ता जा रहूं अपनी सारी बेपरवाहियां मैं औरों के शिक़वे का हिसाब क्यूँ रखूं । कब्रिस्तान भी मैं ,कब्र भी मैं और कब्रगाह भी मैं अपनी मज़ार पर नसीहतों की चादर क्यूँ रखूं । गिरा रहा है ज़माना फिर भी खड़ा हूं मैं आखिरी आकबत की मिसाल क्यूँ रखूं । अगर मेरी मोहब्बत की हद नही कोई तो मैं दर्द का हिसाब क्यूँ रखूं । *आकबत = मृत्यु के बाद कि अवस्था . #yqbaba #yqdidi #yqbhaijan #haider #imtiazali #dev #yqbabachallenge