मैं उम्मीद से उम्मीद जोड़ता हूँ ख्वाबो का थोड़ा कद बढ़ता हूँ वैसे ही जैसे ताश के पत्तो का एतिहात के साथ महल बनाना पर आखरी छोर आते ही कौन कर देता हैं हवा से चुगली वो आती हैं बस टूट जाती हैं उम्मीदे, बिखर जाते हैं वो ख्वाब ताश के पत्तो की तरह पर हवा से कह देना रूका नहीं हूं मैं ।। (लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से