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सुख दुख कि नदी अलौकिक , आनन्दमय चित्त को ढूंढे ।

सुख दुख कि नदी अलौकिक ,
आनन्दमय चित्त को ढूंढे ।

कहां से आई ऐ सुन्दर नारी , 
दिखने मे तू अतिशय प्यारी । 

देखकर तुझको मन हरसाएं, 
पाकर तुझको हृदय महकाएं ।

दिखती  सारी दुनिया से न्यारी , 
सबके तुम जीवन की क्यारी । 

तुझसे सुबह तुझी से शाम , 
तू ही सृष्टि की जननी , 
तुझसे ही जगत कल्याण ।। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "
सुख दुख कि नदी अलौकिक ,
आनन्दमय चित्त को ढूंढे ।

कहां से आई ऐ सुन्दर नारी , 
दिखने मे तू अतिशय प्यारी । 

देखकर तुझको मन हरसाएं, 
पाकर तुझको हृदय महकाएं ।

दिखती  सारी दुनिया से न्यारी , 
सबके तुम जीवन की क्यारी । 

तुझसे सुबह तुझी से शाम , 
तू ही सृष्टि की जननी , 
तुझसे ही जगत कल्याण ।। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "

प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "