मानशी वो लड़की जो खुद को ही नही जानती। दिल खूबसूरत दिमाक बहादुर हिम्मत जैसे रानी झांसी की पवित्र है मन जैसे थाली काशी की खुला मन खुला विचार जैसे चमकती हुई पैनी तलवार शेर दिल ख्वाब उस के जज्बा जैसे जवान सी (आर्मी) मानशी वो लड़की जो खुद को ही नही जानती बीती हुई मोब्बत उस की कहानियो की लाजवाब किताब आज भी दिल में है उस के उस इंसान का एक एक दिन का हिसाब बाते उस की प्यारी प्यारी मजबूती जैसे तूफ़ांशी मानशी वो लड़की जो खुद को ही नही जानती आज ऐसी सब बेटिया हो तो कोई घूर कर भी नही देखे जो बेबाक सी इंसान है अमीरों वाला जिस का मकान है घमण्ड जिस के पास नही उमीदो में जिस के काश नही कहती है शख्त हूँ पर भोली है जो खुद को ही नही पहचानती मानशी वो लड़की जो खुद को ही नही जानती mashi