नयन नीर बह चले, अब वो प्यार न रहा हृदय की पुकार भी, असरदार न रहा। लूटती हुयी अस्मते, नजर देखती रही अस्मिता बचाने को, मददगार न रहा। करुणा अनुनय विनय,सब धराशायी हुए आचरण मनुष्यता, मनुष्य त्यागता रहा। क्या हुआ इंसान को,इंसानियत है खो रही अपने स्वार्थ पूरित को,हृदयहीन हो रहा। नयन नीर बह चले, अब वो प्यार न रहा हृदय की पुकार भी, असरदार न रहा।। :-: लक्ष्मीनरेश :-: #AdhuriBaat #हृदयहीनता