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पल्लव की डायरी तलबगारों ने ऐब हजारों लगा दिये है श

पल्लव की डायरी
तलबगारों ने ऐब हजारों लगा दिये है
शर्तो पर जीने के फरमान सुना दिये है
राह चुनने में,मिजाज अब काम नही आते है
एक सी खीच दी है रेखा,खूंटे से बंधे नजर आते है
अपने कोई रंग ढंग काम नही आते है
दौड़ रहे है दुनियाँ के नक्शे कदम पर
आंनद सकून के नजर नही आते है
नजारे कैसे है हम महसूस नही कर पाते है
तय शुदा जिंदगी में,हम गुलाम नजर आते है
आजादी से हम त्योहार और उत्सव भी नही कर पाते है
पता नही हम जिंदा भी है,खिलौना हम
व्यवस्थाओं के नजर आते है
                                          प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  #holihai खिलौना हम सब, व्यवस्थाओं के नजर आते है
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