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ईश्वर की ये कोई साज़िश है या कोई दूरदृष्टि है कैसा

ईश्वर की ये कोई साज़िश है या कोई दूरदृष्टि
है कैसा ये विडंबना और कैसी है ये लीला
निकले थे घरों से ये एक नया घर बनाने
अपने सपनो के पंखों को नया आयाम देने
खुद की पसीनो से इन्होंने अमीरों को सींचा
तरक्की दी,खुशियां बाटी,नाम रौशन किया
उन्नति,प्रोन्नति, घर,बंगला न जाने क्या-क्या
पर जब पड़ी ज़रूरत अमीरों की इन्हें तो पाया
बस अवहेलना,भूख,अपमान और तिरस्कार
रोटी छोड़ा गांव का,छोड़े वो मिट्टी और रिश्तेदार
कर याद अपने देश को,छोड़ा मोहरूपी सँसार
था किस्मत इनकी झूठी,और तप इनका बेकार
ट्रक,बस,ट्रैन और पैदल लौटे सब लाचार
लौट अपने देश को,पुनः पाया तिरस्कार
देखे सब हयदृष्टि से,जैसे वे हो जाये बीमार। #migrant labour
ईश्वर की ये कोई साज़िश है या कोई दूरदृष्टि
है कैसा ये विडंबना और कैसी है ये लीला
निकले थे घरों से ये एक नया घर बनाने
अपने सपनो के पंखों को नया आयाम देने
खुद की पसीनो से इन्होंने अमीरों को सींचा
तरक्की दी,खुशियां बाटी,नाम रौशन किया
उन्नति,प्रोन्नति, घर,बंगला न जाने क्या-क्या
पर जब पड़ी ज़रूरत अमीरों की इन्हें तो पाया
बस अवहेलना,भूख,अपमान और तिरस्कार
रोटी छोड़ा गांव का,छोड़े वो मिट्टी और रिश्तेदार
कर याद अपने देश को,छोड़ा मोहरूपी सँसार
था किस्मत इनकी झूठी,और तप इनका बेकार
ट्रक,बस,ट्रैन और पैदल लौटे सब लाचार
लौट अपने देश को,पुनः पाया तिरस्कार
देखे सब हयदृष्टि से,जैसे वे हो जाये बीमार। #migrant labour
adityakumar3184

aditya kumar

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