बे–इंतिहा मोहब्बत है तुमसे। दूर जो होऊंँ मर जाऊंँ कसम से। एक वादा आज़ तुम करो हमसे। मरने तक साथ निभाओगे हम से। दिल तुझे देख मेरा ठहरने लगता। धीरे धीरे बे–इंतिहा प्यार करने लगता। लफ़्ज़ ख़ामोश हो गए हैं बे–इंतिहा मोहब्बत हुई है जबसे। हर पुराने ज़ख्म सारे भर गए इतना इश्क़ किया तूने मुझसे। हर सांँस दिल की हर धड़कन में रहते मेरी मोहब्बत की इंतिहा ना पूछिए सनम। कहांँ कहांँ बसे तुम जगह ना पूछिए सनम। ♥️ Challenge-959 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।