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बिछड़ गया मनमीत,हमारा क्या होगा अंजाम। ढूंढूं रहा

बिछड़ गया मनमीत,हमारा क्या होगा अंजाम।
ढूंढूं रहा दिन रात, जहाँ मिलते मुझको घनश्याम ।
हरि दर्शन की आस, लिए मैं पहुंँच गया ब्रज धाम।
खोज रहा हर मार्ग, नजर  आ जाओ अब सुखदाम।।

©Tarun Rastogi kalamkar
  #मनमीत