लिखने लगा ही था मैं चाँद तुझे मतले में फिर याद आया कि मैं सूरज सा काबिल कहाँ फिर सोचा हीर ही लिख देता हूँ तुझे मेरी पर फिर भी तू होगी राँझा को हासिल कहाँ उसके बाद तो पूरी शाम खप गयी सोचते सोचते कि तेरे बारे में क्या लिखूं, आखिर एक हसीन ख्वाब ही लिख दिया मैंने तुझे बाद में याद आया कि भला ख्वाबों की कोई मंज़िल कहाँ #काफिर #nojoto #nojotohindi #nojotopoetry