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"धूप की परवाह, ना साँझ का डर, यारों संग मिट्टी मे

"धूप की परवाह, ना साँझ का  डर, यारों संग मिट्टी में खिलता बचपन
बेफ़िक्र करते  मनमानी, रूठते, मनाते, बर्फ़ के गोले मेें हो जैसे बचपन।
माँ बाप  की डाट, वो भाई बहन की तकरार, मासूम शरारतें है बचपन
स्मृतियाँ शेष ! छूट गया वो आनंद, अब कौन लौटा पाएगा वो बचपन।।  कृृपया कैप्शन ध्यानपूर्वक पढें। 👇👇👇👇

✍️ आज की विशेष प्रतियोगिता का शीर्षक है "बचपन की खिड़की से"।
हम सभी के दिल के किसी कोने में बचपन सदैव जिंदा रहता है। कभी न कभी उस बचपन के यादों की तस्वीर हमें बचपन की उन गलियों में लेकर जाती है जहां बहुत सारी मस्ती अठखेलियां और शरारती हुआ करती थीं। तो चलिए झांंकते हैं बचपन की उन्हीं गलियों में और बटोर कर ले आते हैं वहां से बचपन की मस्ती भरी यादों की कुछ फुलझड़ियां।
जी,हां आज के शीर्षक के अंतर्गत आपको बचपन की कुछ खट्टी मीठी यादों को अपने मोती रूपी शब्दों से कागज के मैदान पर बिखेर देना है। 

✍️आपको अपने मित्रों के साथ मिलकर यह collab करना है। कम से कम एक और अधिक से अधिक जितने चाहे उतने collab आप कर सकते हैं। याद रखें शीर्षक के अंतर्गत ही अपनी रचना लिखें।
"धूप की परवाह, ना साँझ का  डर, यारों संग मिट्टी में खिलता बचपन
बेफ़िक्र करते  मनमानी, रूठते, मनाते, बर्फ़ के गोले मेें हो जैसे बचपन।
माँ बाप  की डाट, वो भाई बहन की तकरार, मासूम शरारतें है बचपन
स्मृतियाँ शेष ! छूट गया वो आनंद, अब कौन लौटा पाएगा वो बचपन।।  कृृपया कैप्शन ध्यानपूर्वक पढें। 👇👇👇👇

✍️ आज की विशेष प्रतियोगिता का शीर्षक है "बचपन की खिड़की से"।
हम सभी के दिल के किसी कोने में बचपन सदैव जिंदा रहता है। कभी न कभी उस बचपन के यादों की तस्वीर हमें बचपन की उन गलियों में लेकर जाती है जहां बहुत सारी मस्ती अठखेलियां और शरारती हुआ करती थीं। तो चलिए झांंकते हैं बचपन की उन्हीं गलियों में और बटोर कर ले आते हैं वहां से बचपन की मस्ती भरी यादों की कुछ फुलझड़ियां।
जी,हां आज के शीर्षक के अंतर्गत आपको बचपन की कुछ खट्टी मीठी यादों को अपने मोती रूपी शब्दों से कागज के मैदान पर बिखेर देना है। 

✍️आपको अपने मित्रों के साथ मिलकर यह collab करना है। कम से कम एक और अधिक से अधिक जितने चाहे उतने collab आप कर सकते हैं। याद रखें शीर्षक के अंतर्गत ही अपनी रचना लिखें।
krishvj9297

Krish Vj

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