Nojoto: Largest Storytelling Platform

काश किसी की स्मृतियों का भी आखिरी महीना होता जैसे

काश किसी की स्मृतियों का भी आखिरी महीना होता 
जैसे होता है साल का , मौसम का , फलों का और
परिजात के पुष्प का , जो जाते हुए अपनी सुंगध 
पहचान सब लिए चले जाते है, 
जैसे अब मेरे घर के आंगन में अक्टूबर की तरह 
नही गिरते हरसिंगार पुष्प
धीरे धीरे ये चले जा रहे मुझसे बहुत दूर जबकि ये 
जानते है कि कितने प्रिय है ये और इनकी सुगंध मुझे।
ठीक उसी तरह तुम्हारी स्मृतियां भी मेरे अंतर्मन से 
अपनी हर एक यादें , बातें भी ले जा सकती है क्या
जो तुम्हारे साथ बिताए मैंने...

©Aditya kumar prasad काश किसी की स्मृतियों का भी आखिरी महीना होता 
जैसे होता है साल का , मौसम का , फलों का और
परिजात के पुष्प का , जो जाते हुए अपनी सुंगध 
पहचान सब लिए चले जाते है, 
जैसे अब मेरे घर के आंगन में अक्टूबर की तरह 
नही गिरते हरसिंगार पुष्प
धीरे धीरे ये चले जा रहे मुझसे बहुत दूर जबकि ये 
जानते है कि कितने प्रिय है ये और इनकी सुगंध मुझे।

काश किसी की स्मृतियों का भी आखिरी महीना होता जैसे होता है साल का , मौसम का , फलों का और परिजात के पुष्प का , जो जाते हुए अपनी सुंगध पहचान सब लिए चले जाते है, जैसे अब मेरे घर के आंगन में अक्टूबर की तरह नही गिरते हरसिंगार पुष्प धीरे धीरे ये चले जा रहे मुझसे बहुत दूर जबकि ये जानते है कि कितने प्रिय है ये और इनकी सुगंध मुझे।

1,134 Views