काश किसी की स्मृतियों का भी आखिरी महीना होता
जैसे होता है साल का , मौसम का , फलों का और
परिजात के पुष्प का , जो जाते हुए अपनी सुंगध
पहचान सब लिए चले जाते है,
जैसे अब मेरे घर के आंगन में अक्टूबर की तरह
नही गिरते हरसिंगार पुष्प
धीरे धीरे ये चले जा रहे मुझसे बहुत दूर जबकि ये
जानते है कि कितने प्रिय है ये और इनकी सुगंध मुझे।