दोस्तों कहाँ हो? आओ न फिर से, कोई धुन गुनगुनाते हैं, दिवारों पर खली से, सपने सजाते हैं, साइकिल की घंटी में, गीत कोई गाते हैं, उम्मीदों की गेंद को, फिर छक्के लगाते हैं, आओ न! सुनते हैं, इतिहास के किस्से, चाणक्य की नीति और देश के हिस्से, गणित के प्रशनोंकी अनसुलझी परेशानी, वयां करती साहित्यि एक अपनी ही कहानी, आओ न दोस्तों, फिर सपने सजाते हैं, गली के चबूतरे पर, शोर खुब मचाते हैं, हलकी सी बारिश में, फिर भीग आते हैं, कोयल की कूक में बचपन बिताते हैं, सूना सा है, देखो, बचपन का आँगन, कीचड़ की होली और भोले का सावन, चलो न, फिर एक दौड़ लगाते हैं, बगिया के आम, फिर चुन कर लाते हैं, मिटटी की खुशबू का लुत्फ उठाते हैं, कुएं के पानी से फूल खिलाते हैं, आओ न जीते हैं, बचपन का हिस्सा, मीठी सी गुपतगु और दादी का किस्सा, दोस्तों तुम कहाँ हो, जल्दी-जल्दी आओ न, संतोष भरे लमहों को, फिर सुकून पहूंचाओ न, चलो न, लिखते हैं, फिर एक कहानी, गाँव की गलियों में, दौड़ती जिंदगानी। ©Rashmi Ranjan #twistedooze