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पुरुष (अनुशीर्षक में पढ़े) ©pen_of_sawan #feeling

पुरुष
(अनुशीर्षक में पढ़े)

©pen_of_sawan #feelings पुरुष, मर्द, या आदमी तीनों का मतलब 1 ही है
ऐसा इंसान जो कि जीवन में बहुत कुछ मायने रखता है पर शायद उसे इतना महत्व नहीं दिया जाता कई पुरुषों को ये भी नहीं पता कि उनके नाम का भी कोई दिवस होता है, जिन्हें बचपन से कहा जाता है कि रोना नहीं, अगर कोई कमज़ोर है तो उसको कहते हैं "मर्द बन"...... ।
बेचारा लड़का रो भी नहीं सकता..... कितना भी दुःख हो, अंदर से रो लो

माँ से बच्चे खुल के रहते हैं, पिता से डर ही होता है, कभी गले नहीं लगते पापा के, कभी करीब नहीं हो पाते, फ़िर भी पिता को कभी शिकायत नहीं होती 
घर की शादी के एल्बम में सबसे कम फोटो हमारी होती है क्योंकि जब दूल्हा/दुल्हन की बहन अपनी मेहंदी की फोटो खींचा रही होती है, तब भाई या तो कुछ सामान ले जाने गया होता है या किसी रिश्तेदार को लेने, लेकिन फ़िर भी कोई शिकायत नहीं करते हम, किसी से नाराज़ नहीं होते....
लडकियों को तो पापा की परियां कहते हैं, और हमें क्या कहते हैं.????मम्मी के मगरमच्छ..क्यों भाई हमने किस को खाया है यार
बेटी दिवस भी होता जिस पर सभी इतरा के पोस्ट करते हैं "मेरी बेटी मेरा अभिमान" उस वक़्त घर का बेटा भी देख रहा होता है पर उसे फर्क़ नहीं पड़ता, वो हर हालात में खुश है उसे कोई अभिमान कहे या अपमान फर्क़ नहीं पड़ता।
पुरुष
(अनुशीर्षक में पढ़े)

©pen_of_sawan #feelings पुरुष, मर्द, या आदमी तीनों का मतलब 1 ही है
ऐसा इंसान जो कि जीवन में बहुत कुछ मायने रखता है पर शायद उसे इतना महत्व नहीं दिया जाता कई पुरुषों को ये भी नहीं पता कि उनके नाम का भी कोई दिवस होता है, जिन्हें बचपन से कहा जाता है कि रोना नहीं, अगर कोई कमज़ोर है तो उसको कहते हैं "मर्द बन"...... ।
बेचारा लड़का रो भी नहीं सकता..... कितना भी दुःख हो, अंदर से रो लो

माँ से बच्चे खुल के रहते हैं, पिता से डर ही होता है, कभी गले नहीं लगते पापा के, कभी करीब नहीं हो पाते, फ़िर भी पिता को कभी शिकायत नहीं होती 
घर की शादी के एल्बम में सबसे कम फोटो हमारी होती है क्योंकि जब दूल्हा/दुल्हन की बहन अपनी मेहंदी की फोटो खींचा रही होती है, तब भाई या तो कुछ सामान ले जाने गया होता है या किसी रिश्तेदार को लेने, लेकिन फ़िर भी कोई शिकायत नहीं करते हम, किसी से नाराज़ नहीं होते....
लडकियों को तो पापा की परियां कहते हैं, और हमें क्या कहते हैं.????मम्मी के मगरमच्छ..क्यों भाई हमने किस को खाया है यार
बेटी दिवस भी होता जिस पर सभी इतरा के पोस्ट करते हैं "मेरी बेटी मेरा अभिमान" उस वक़्त घर का बेटा भी देख रहा होता है पर उसे फर्क़ नहीं पड़ता, वो हर हालात में खुश है उसे कोई अभिमान कहे या अपमान फर्क़ नहीं पड़ता।
sawansharma3143

Sawan Sharma

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