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(प्रेम रतन धन) ---------- फिदा हुआ मैं फेसबुक पर फ

(प्रेम रतन धन)
----------
फिदा हुआ मैं फेसबुक पर
फ्रेंड बनी जब छोरी
प्रेम रतन धन पायो धुन पर
कोई जतन ना छोड़ी।

व्हाटसअप पर भेजी फोटो
निकाल-निकाल कर ठोड़ी
रंग अनोखा रूप अनोखा
दिल लूट गई वो मोड़ी।

चुपके से नंबर ले देकर
रास रचाया जमके
मिलन हमारा ऑनलाइन था
राधा-कृष्ण सा बनके।

बात बढ़ी शादी तक आई
मिली नही वो आके
टाइम नही बता के मुझको
खूब छकाया जमके।

मैं हठी, जिद ठान लिया था
ब्याह राचाऊंगा मैं
जिसे आंखों से देख ना पाया
संग निभाउंगा मैं।

आनन फानन में skype पर
 उसे बुलाया मैने
एडिटेड फोटो के जरिये
खूब रंग जमाया उसने।

वो परी सी दिखती थी
जैसे कोई माया
उसने मीठी बातों से
मम्मी पापा को पटाया।

झटपट शादी डॉट कॉम पर
डेट निकाला मैंने
मंडप में जा बैठा
सबको खूब खिलाया मैंने।

घूंघट में दुल्हन ले
विदा हुआ मैं डटके
मन में लड्डू फुट रहे थे
जब गाड़ी खाए झटके।

सुहाग सेज पर बैठ गई वो
बिन अपना मुँह खोले
शायद राह देख रही थी
राजा जी पट खोले।

मैंने अपना हाथ बढ़ा
घूंघट का पट खोला
आंखे मेरी फटी रह गई
गिरा था बम का गोला।

सॉक लगा हजार बोल्ट का
दर्शन उसका करके
जीभ तालु से जा चिपका
फेविकोल रगड़ के।

अद्भुत काली थी वो
नाक का पता नही था
दांत बाहर को निकले थे
नजरे कँहा सही था?

मन मे आंधी तन में बिजली
कड़क रहा था ठनके
यमदूत भी नाच रहे थे
साला ससुरी बनके।

खून के आंसू रो रो कर
मरता सा मुसकाया
करम मेरे फुट गए थे
 प्रेम रतन धन पाया।

दिलीप कुमार खाँ अनपढ़ #प्रेम रतन धन
(प्रेम रतन धन)
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फिदा हुआ मैं फेसबुक पर
फ्रेंड बनी जब छोरी
प्रेम रतन धन पायो धुन पर
कोई जतन ना छोड़ी।

व्हाटसअप पर भेजी फोटो
निकाल-निकाल कर ठोड़ी
रंग अनोखा रूप अनोखा
दिल लूट गई वो मोड़ी।

चुपके से नंबर ले देकर
रास रचाया जमके
मिलन हमारा ऑनलाइन था
राधा-कृष्ण सा बनके।

बात बढ़ी शादी तक आई
मिली नही वो आके
टाइम नही बता के मुझको
खूब छकाया जमके।

मैं हठी, जिद ठान लिया था
ब्याह राचाऊंगा मैं
जिसे आंखों से देख ना पाया
संग निभाउंगा मैं।

आनन फानन में skype पर
 उसे बुलाया मैने
एडिटेड फोटो के जरिये
खूब रंग जमाया उसने।

वो परी सी दिखती थी
जैसे कोई माया
उसने मीठी बातों से
मम्मी पापा को पटाया।

झटपट शादी डॉट कॉम पर
डेट निकाला मैंने
मंडप में जा बैठा
सबको खूब खिलाया मैंने।

घूंघट में दुल्हन ले
विदा हुआ मैं डटके
मन में लड्डू फुट रहे थे
जब गाड़ी खाए झटके।

सुहाग सेज पर बैठ गई वो
बिन अपना मुँह खोले
शायद राह देख रही थी
राजा जी पट खोले।

मैंने अपना हाथ बढ़ा
घूंघट का पट खोला
आंखे मेरी फटी रह गई
गिरा था बम का गोला।

सॉक लगा हजार बोल्ट का
दर्शन उसका करके
जीभ तालु से जा चिपका
फेविकोल रगड़ के।

अद्भुत काली थी वो
नाक का पता नही था
दांत बाहर को निकले थे
नजरे कँहा सही था?

मन मे आंधी तन में बिजली
कड़क रहा था ठनके
यमदूत भी नाच रहे थे
साला ससुरी बनके।

खून के आंसू रो रो कर
मरता सा मुसकाया
करम मेरे फुट गए थे
 प्रेम रतन धन पाया।

दिलीप कुमार खाँ अनपढ़ #प्रेम रतन धन