खिलौने टूट जाते है खिलौने टूट जाते है बचपन के खिलौने साथी रूठ जाते है अक्सर टूट जाते है सफ़र में अक्सर पर वही खिलौने अपने छूट जाते है फिरसे आ जाते है बचपन की बातो को पर जब कुछ रिश्ते बचपन में भूल जाते है हाथों से छूट जाते है पर कुछ ताउम्र उसी फिर कितना भी मनाओ किरदार को निभाते है वो दिल से रूठ जाते है शोर नहीं होता है साहेब खुद को खुदा मानकर क्योंकि वो टूट जाते है औरोसे खिलवाड़ करते हैं जी भर के खेलने के बाद - राकेश शिंदे ये उन्हें तोड़ दिया करते है जैसे बाजार में खिलौने नए रखे हुए दिखते है देखी है मैंने नूमाईशे दिल बाजार में भी बिकते हैं ©Rakesh Shinde खिलौने टूट जाते है #Life #Childhood #hindi_poetry #hindikavita #hindi_poem #khilone #RakeshShinde