परिंदा, पानी, परछाई अपने ही अक्स से लड़ाई माना झूठ नहीं कहता आइना पर उसने बदला जिंदगी का माइना जाने कितनों को परछाई ने छला होगा शायद किसी का हुआ भी भला होगा जाल हैं रूप, रंग, स्वाद, आवाज़ इनमें फंसा शख्स खो देता है अपना आज ©Kamlesh Kandpal #prchhai