आज सफर में एक वाकया वाकई अजीब था,प्लेटफॉर्म पर भटकता एक गरीब था,ना आया कोई उस बूढ़ी औरत की मदद करने को,पता नही इंसानियत ही मर गयी या ये उसका बदनसीब था। इतने में ही एक नौजवान उस बूढ़ी अम्मा को लेकर मेरे पास आया,कहता कोई नही करता अब मदद यहाँ यह सुनकर हुआ मुझे भी बहुत पछतावा,कहता इन्हें जाना था यमुनानगर पहुंच गई अम्बाला उतार देना वहाँ इतना कहकर मुझे उनका हाथ थमाया। रोज यहाँ हिन्दू मुस्लिम की दुश्मनी को सुर्ख़ियो में लाया जाता है,मैं उस देश का वासी हूँ जहां इंसान अपनी जात से जाना जाता है,जब आती है आफत तो दूर हो जाते हैं धर्म और जाति के ठेकेदार,तब इंसान ही इंसान के काम आता है। हुआ कुछ यूँही वहाँ भी जो बूढ़ी औरत खैर मना रही थी,वो रुकसाना उस सुमित नाम के लड़के को बहुत सराह रही थी,पूछा नाम उसके अपने बच्चों का तो इरफान और इरशाद बता रही थी अब कहाँ गया वो धर्म और कहां गयी वो जाती तुम्हारी,जिसको लेकर रोज झगड़ा करने की लगी है बीमारी,कर मदद धर्म जाने बिना हर इंसान की,वो अल्लाह भी खुश होगा और वो भगवान भी। #insaniyat