तान्या: एक तरंगिणी उठो! हे तरंगिणी……. तट पर पावन स्थिर-सा जल; थोड़ी मलिन पर तन धोती जल। बीच तरंगिणी तीव्र धारा; अति-पावन बहती जल-धारा। कल-कल करती बहु-रंगी ये जल और धारा।। जीवन कम मध्य-तरंगिणी; पर, अतिपावन हैं वो जीवनधारा।। टिकते नहीं वहां कोई, स्थिर नही वो दुर्लभ हैं मनधारा।। कुछ स्थिर-सा तट, पर अतीव जीवनधारा। विचार-वर्षा भींगो देती, पर मलिन में पावन ढूंढ लेती। सूर्य की तेज हर रोज नहलाती, वाष्प-तरलता ले जाती। बारिश की बूंदे बरसाती जैसे नव-तरंग कलरव कराती। तट-टकराती जलधारा, काट देती शिला-खड़ा। करती जो चोट बार-बार, कर देती अभ्यास सारा। है परिपूर्ण जीवनधारा, यही है तरंगिणी और धारा। छोड़ती नहीं जीवो को आश्रय-घर दिए बहती… सर्वस्व सर्वदा समदर्शी और केवल देती…. यही है नदी और उसकी भावना।। कल-कल करती फैलाती सौरभ…. यही पर तान्या…. खेलती धारा.. कलरव कर बहती धारा... हे तरंगिणी…. ©Saurav life #Stars #spmydream