"दावते चाय" कोई और होता तो शायद हम तवज्जो भी ना देते,पर क्या करें पहली दफा रुबरु हो कर जनाब ने हमें चाय की दावत दी थी। वैसे जाने की जल्दी तो थी हमे बड़ी(२) पर ये बेताब दिल भला कैसे मुकर जाता? फ़ुरसत तो नहीं पर हां इक मौका जरूर था। बूंद बांदी हो रही थी,हल्का फुल्का बारिश भी था। खूबसूरत सा समां,और एक अजीब सी कश्मकश! कि ऐसे मस्त आलम में भला उन्हें तन्हा कैसे छोड़ दिया जाता।। ।। शुक्रिया।। ...बीना।। #चाय#शायरी।#मेरेख्याल।