ग़ज़ल वैसे तो किसी भी चीज का मोहताज नहीं हूं मैं, मगर जो कल था जैसा था वोह आज नहीं हूं मै। आखिर में तो बयां करना ही पड़ता है दर्द अपना, मगर दर्द ए दिल का कोई अल्फ़ाज़ नहीं हूं मैं। अनगिनत खताओं से भरी पढ़ी है मेरी यह ज़िन्दगी, और इसे दोहराने से आया कभी भी बाज़ नहीं हूं मैं। मुझे समझना या समझाना कोई आसान काम नहीं, क्युकी जिसे सुलझाया जा सके वो राज़ नहीं हूं मैं। मोहब्बत करता हूं गर तो दिल खोल कर करता हूं मैं, ज़माने क्या करेगा इसका करता लिहाज नहीं हूं मैं। जाम कड़वी है मगर क्या करे पीनी पड़ती है मुझको, गमों के बोझ से ज्यादा मगर हुआ ताराज नहीं हूं मैं। #ताराज़ = बर्बाद