a-person-standing-on-a-beach-at-sunset ठीक है या कंक्रीट है विप्लव के अमोघ में भी अनुराग की सीख है विश्व भर की विरासत बचाना अपनी रीति है संकृति है अनमोल बहुत जिसमें नीति है बिखरी है सभ्यता उसमें गीत गाते हैं बेवजह भव्यता की कैसा ये जीवन यहां बिखर रहा बिखर रहां शब्दों के सब भेद बताते जितने भी साधु हैं आते मैं मांग रही हूं एक वर अगर ले लें गोंद एक एक गांव साधु सब शाकाहार का प्रचार होगा जीवन का तब उत्थान होगा वरना जैसे चल रहा है गंगा में सब डुबकी लगाकर फिर से अपना झोला भर वैभव और धन जुटाकर अत्याचारी एक नहीं कई न जाने कितने बाबा आएंगे।। ©Shilpa Yadav #SunSet #prediction2025#AI#shilpayadavpoetry#kumbh urdu poetry sad hindi poetry