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पिता जो दौड़ा करते कभी आज थम थम कर चलने लगे जो चट

पिता

जो दौड़ा करते कभी
आज थम थम कर चलने लगे
जो चट्टानों से खड़े कभी
आज बेबस दिखने लगे

हांथों में जिनकी पूरी लकीरें
आज लकीरें बिगड़ने लगी
जो आंखे सपने बुना करती कभी
आज दूर देखने की करती कोशिश
पर देख केवल नज़दीक ही पाती

जो डटकर मुश्किलों का सामना करते कभी
आज उनकी कमर झुकने सी लगी है
निकल चले जिंदगी की उस दौड़ में
जहां मजबूरियां बनने लगी मुसीबतें
सारी मुश्किलों को ख़ुद में समा कर
अपनों के बीच केवल खुशियां देकर

जीवन के इस चक्र को 
उन्होंने बनाया अपना साथी
चाहत सिर्फ इतनी उनकी
बाल बांका न कर पाए कोई
खुशहाल रहे मेरा बगिया
डाली डाली फले फूले
पत्ते पत्ते खिल जाए सारे

धन्यवाद!
आयुषी
मुंगेर,बिहार #river #पिता
#Ayushi#Munger
पिता

जो दौड़ा करते कभी
आज थम थम कर चलने लगे
जो चट्टानों से खड़े कभी
आज बेबस दिखने लगे

हांथों में जिनकी पूरी लकीरें
आज लकीरें बिगड़ने लगी
जो आंखे सपने बुना करती कभी
आज दूर देखने की करती कोशिश
पर देख केवल नज़दीक ही पाती

जो डटकर मुश्किलों का सामना करते कभी
आज उनकी कमर झुकने सी लगी है
निकल चले जिंदगी की उस दौड़ में
जहां मजबूरियां बनने लगी मुसीबतें
सारी मुश्किलों को ख़ुद में समा कर
अपनों के बीच केवल खुशियां देकर

जीवन के इस चक्र को 
उन्होंने बनाया अपना साथी
चाहत सिर्फ इतनी उनकी
बाल बांका न कर पाए कोई
खुशहाल रहे मेरा बगिया
डाली डाली फले फूले
पत्ते पत्ते खिल जाए सारे

धन्यवाद!
आयुषी
मुंगेर,बिहार #river #पिता
#Ayushi#Munger