वृक्ष आपस में कुछ बतिया रहे थे , अपना दुखड़ा सुना रहे थे। किसी का साथी कटा था या कोई जिन्दा जला था किसी के थे घाव गहरे या किसी का तन छिला था , अपने किस्सों में वो आते विनाश चेहरा दिखा रहे थे , वृक्ष आपस ........ आखिर क्या गुनाह किया है हमने ,किस बात की सज़ा पा रहे हैं। हमने किसका घर है तोड़ा, जो हमारे उजाड़े जा रहे हैं। अरे हमने तो खुशियां बांटी थीं ,अपना सब कुछ वार दिया था। तुमने हमसे जो भी माँगा , बेझिझक हर बार दिया था। फिर भी तुमको चैन न आया स्वार्थ की सीमा पार कर दिए , अपनी क्षुधा मिटाने खातिर हमारे घर बर्बाद कर दिए। तुम कहते हो हम जीवित हैं हममें भी साँसें चलती हैं , हमसे तुमको दाना पानी और ऑक्सीजन भी मिलती है। ये सब कुछ तुम भूल गए हो या तुमको परवाह नहीं है , कल्कि का अवतार लिए हो या जीने की चाह नहीं है। क्या बोलोगे जब अगली पीढ़ी हमारे विषय में पूछेगी , हत्यारे हो यह कहकर के धिक्कारेगी , थूकेगी। कह पाओगे तुम उनको की तुम लालच में अंधे थे , कुदरत के चीर हरण पर तुम धृतराष्ट्र बनकर बैठे थे। हम न होंगे इस धरा पर प्रलयकाल मंडराएगा , ऑक्सीजन भी सीमित होगी जलस्त्रोत मिट जायेगा। विशाल हिमालय भी पिघलेगा शीत धारा गर्माएगी , नग्न प्रकृति भी क्रोध में आकर तांडव रूप दिखाएगी। समय शेष है बर्बादी में , वृक्ष बचाओ वृक्ष लगाओ बेलिबास हो रही धरती इसको फिर से हरा बनाओ। #savetrees #saveearth #savenature #poetry वृक्ष आपस में कुछ बतिया रहे थे , अपना दुखड़ा सुना रहे थे। किसी का साथी कटा था या कोई जिन्दा जला था किसी के थे घाव गहरे या किसी का तन छिला था , अपने किस्सों में वो आते विनाश चेहरा दिखा रहे थे ,