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जीने की एक ज़िद है वरना कब का मैं मर गया होता उम्म

जीने की एक ज़िद है
वरना कब का मैं मर गया होता
उम्मीदें ना जागी होती मुझमें
तो कब का मैं सो गया होता।

हौसले बुलंद है
वरना कब का मैं हार गया होता
उम्मीदें ना जागी  होती मुझमें
तो कब का मैं सो गया होता।

©कवि संतोष जी जीने की एक ज़िद है
वरना कब का मैं मर गया होता
उम्मीदें ना जागी होती मुझमें
तो कब का मैं सो गया होता।

हौसले बुलंद है
वरना कब का मैं हार गया होता
उम्मीदें ना जागी  होती मुझमें
जीने की एक ज़िद है
वरना कब का मैं मर गया होता
उम्मीदें ना जागी होती मुझमें
तो कब का मैं सो गया होता।

हौसले बुलंद है
वरना कब का मैं हार गया होता
उम्मीदें ना जागी  होती मुझमें
तो कब का मैं सो गया होता।

©कवि संतोष जी जीने की एक ज़िद है
वरना कब का मैं मर गया होता
उम्मीदें ना जागी होती मुझमें
तो कब का मैं सो गया होता।

हौसले बुलंद है
वरना कब का मैं हार गया होता
उम्मीदें ना जागी  होती मुझमें