माना कि तुम बहुत हसीं और रौबदार हो मगर साड़ी सा सादापन हमसा कहाँ मिलेगा..? चाहत होगी तुम्हें आसमाँ से आगे जहाँ की बताओ तो धरती पर हमसा कहाँ मिलेगा..? हाँ, हर हुनर की मुक्कमल तस्वीर हो, मगर! अनगढ़ा बुत यहाँ तुम्हें हमसा कहाँ मिलेगा.? होंगें बड़े चाहने वाले तेरे और भी यहाँ मगर, बिन हक़ जताए तुम्हें चाहे हमसा कहाँ मिलेगा..? सुनो!दिखावे और बेलिबासी के इस दौर में अदब और सलीक़े वाला हमसा कहाँ मिलेगा..? मुखोटे ओढ़े झूठी इर्दगिर्द की चकाचौंध में सादगी में लिपटा बदन हमसा कहाँ मिलेगा..? माना कि तुम बहुत हसीं और रौबदार हो मगर साड़ी सा सादापन हमसा कहाँ मिलेगा..? चाहत होगी तुम्हें आसमाँ से आगे जहाँ की बताओ तो धरती पर हमसा कहाँ मिलेगा..? हाँ, हर हुनर की मुक्कमल तस्वीर हो, मगर! अनगढ़ा बुत यहाँ तुम्हें हमसा कहाँ मिलेगा.?