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ऐ ढलती शाम, मेरे नाम, कोई पैग़ाम है क्या। यूं रुखस

ऐ ढलती शाम, मेरे नाम, कोई पैग़ाम है क्या।
यूं रुखसत होने को हो,अरे! परेशान हो क्या।
रूठी हुई सी हो, आंख नम है तुम्हारी।
जरा बताओ, मेरी खिलाफत का कोई इंतजाम हैं क्या।
अरे! मेरी तकदीर को इतना क्यों कोसती हो,
वो सजा-ए-मौत में मेरा भी नाम है क्या।
भटक रहे है कुछ लोग, मेरे वजूद की तलाश में,
जरा बताओ, मेरे भी सर कोई इनाम है क्या।।

- आलोक कुशवाहा #sad_things
ऐ ढलती शाम, मेरे नाम, कोई पैग़ाम है क्या।
यूं रुखसत होने को हो,अरे! परेशान हो क्या।
रूठी हुई सी हो, आंख नम है तुम्हारी।
जरा बताओ, मेरी खिलाफत का कोई इंतजाम हैं क्या।
अरे! मेरी तकदीर को इतना क्यों कोसती हो,
वो सजा-ए-मौत में मेरा भी नाम है क्या।
भटक रहे है कुछ लोग, मेरे वजूद की तलाश में,
जरा बताओ, मेरे भी सर कोई इनाम है क्या।।

- आलोक कुशवाहा #sad_things