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हां देखा है मैंने सड़कों पे यूं भूखे-नंगे बचपन को,

हां देखा है मैंने सड़कों पे
यूं भूखे-नंगे बचपन को,
आंखों में प्यारी चमक लिए
कभी गिरते कभी संभलते वो,
कल्पना के पंख इनके
स्ट्रीट लाइटों के नीचे बुने है जो,
मासूम नजरों का इल्म
शायद कल अजी़यत की इन्तहां हो।
भूख की दुश्वारी उनसे पूछो
सूरते बयां कर देंगे अच्छे से,
छत की छाया की कीमत पूछो
उस बेदर झुग्गी वाले बच्चे से,
बारिश में इक बार नहीं कई मर्तबा उनके सपने धुलते
और आंखों के आंसू तो मानो,बहते कीचड़ वाले रस्ते से,
मलाल माथे की लकीरों पे, अल्फाज़ जहा़नत से भरे
अभिमान चेहरे पे मगर मालूम होते दिल के सच्चे से।
तंज कसती ये सर्द हवाएं
सुन बेकस पंछी गर्दिश की रात है,
ना वक्त कभी बदलेगा तेरा 
ना इस कंगाली से निजात है,
बावरा मन जानता है स्याह रातों के बाद ही 
शायद नवल उज्जवल प्रभात है,
मलाल करता है क्यूं बंदे?
ये तेरी खता नहीं तेरे गुजिश्ते की बिछाई बिसात है।



      #Slum area
हां देखा है मैंने सड़कों पे
यूं भूखे-नंगे बचपन को,
आंखों में प्यारी चमक लिए
कभी गिरते कभी संभलते वो,
कल्पना के पंख इनके
स्ट्रीट लाइटों के नीचे बुने है जो,
मासूम नजरों का इल्म
शायद कल अजी़यत की इन्तहां हो।
भूख की दुश्वारी उनसे पूछो
सूरते बयां कर देंगे अच्छे से,
छत की छाया की कीमत पूछो
उस बेदर झुग्गी वाले बच्चे से,
बारिश में इक बार नहीं कई मर्तबा उनके सपने धुलते
और आंखों के आंसू तो मानो,बहते कीचड़ वाले रस्ते से,
मलाल माथे की लकीरों पे, अल्फाज़ जहा़नत से भरे
अभिमान चेहरे पे मगर मालूम होते दिल के सच्चे से।
तंज कसती ये सर्द हवाएं
सुन बेकस पंछी गर्दिश की रात है,
ना वक्त कभी बदलेगा तेरा 
ना इस कंगाली से निजात है,
बावरा मन जानता है स्याह रातों के बाद ही 
शायद नवल उज्जवल प्रभात है,
मलाल करता है क्यूं बंदे?
ये तेरी खता नहीं तेरे गुजिश्ते की बिछाई बिसात है।



      #Slum area
khushisingh9550

Khushi Singh

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