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ऐ यक़ीनों के ख़ुदा शहर-ए-गुमाँ किस का है नूर तेरा

ऐ यक़ीनों के ख़ुदा शहर-ए-गुमाँ किस का है
नूर तेरा है चराग़ों में धुआँ किस का है

क्या ये मौसम तिरे क़ानून के पाबंद नहीं
मौसम-ए-गुल में ये दस्तूर-ए-ख़िज़ाँ किस का है

राख के शहर में एक एक से मैं पूछता हूँ
ये जो महफ़ूज़ है अब तक ये मकाँ किस का है

मेरे माथे पे तो ये दाग़ नहीं था पहले
आज आईने में उभरा जो निशाँ किस का है

वही तपता हुआ सहरा वही सूखे हुए होंट
फ़ैसला कौन करे आब-ए-रवाँ किस का है

चंद रिश्तों के खिलौने हैं जो हम खेलते हैं
वर्ना सब जानते हैं कौन यहाँ किस का है

©Jashvant
  महफ़ूज़ मकान किसका है  Dr.Mahira khan PФФJД ЦDΞSHI Ek Alfaaz Shayri vineetapanchal Geet Sangeet
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Jashvant

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महफ़ूज़ मकान किसका है Dr.Mahira khan @PФФJД ЦDΞSHI @Ek Alfaaz Shayri @vineetapanchal Geet Sangeet #Life

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