कैसे सावन आये तुम बिन गहने, छितिज धरा सब धुल उराये, नभ के बदल बन गये पराये, उमड़ घुमड़ तुम आते ऐसे| कसक मन की भी जाती जैसे, जग चर की तुम तृष्णा मिटाते, सूखे नयनों में आके नीर गिराते, पर आये सावन बिन तुम गहने| कोई जैसे चुप चुप से लगे रहने .. बेकल मन, सुने सपने … बरसों सावन अब मेरे अँगने...✍️ बरसो सावन ,अब मेरे अँगने..✍️