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ये कौन राह में बैठे हैं मुस्कुराते हैं मुसाफिरों क

ये कौन राह में बैठे हैं मुस्कुराते हैं
मुसाफिरों को ग़लत रास्ता बताते हैं
तेरे लगाये हुए ज़ख्म क्यों नहीं भरते
मेरे लगाये हुए पेड़ सूख जाते हैं।

कोइ  तुम्हारा सफ़र गया  तो पु६ेगे 
कि रेल गुजरे तो हम हाथ क्यों हिलाते है ye kaun rah me baithe hai
ये कौन राह में बैठे हैं मुस्कुराते हैं
मुसाफिरों को ग़लत रास्ता बताते हैं
तेरे लगाये हुए ज़ख्म क्यों नहीं भरते
मेरे लगाये हुए पेड़ सूख जाते हैं।

कोइ  तुम्हारा सफ़र गया  तो पु६ेगे 
कि रेल गुजरे तो हम हाथ क्यों हिलाते है ye kaun rah me baithe hai