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हौसला बुलंद कर कदम बढ़ाओ। मुसाफिर जो अंधेरे को आगो

हौसला बुलंद कर
कदम बढ़ाओ।
मुसाफिर जो अंधेरे को आगोश में ले बढ़ता चले,
मंजिल तक पौहंच ही जाते है,
सुबह की रोशनी के हात थामे।
अगर अंधेरा गहरी हो और
राहें गुम हो कहीं,...
- पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़े अंधेरा जो डराए तो
हौसला बुलंद कर
कदम बढ़ाओ।
मुसाफिर जो अंधेरे को आगोश में ले बढ़ता चले,
मंजिल तक पौहंच ही जाते है,
सुबह की रोशनी के हात थामे।
अगर अंधेरा गहरी हो और
राहें गुम हो कहीं,
हौसला बुलंद कर
कदम बढ़ाओ।
मुसाफिर जो अंधेरे को आगोश में ले बढ़ता चले,
मंजिल तक पौहंच ही जाते है,
सुबह की रोशनी के हात थामे।
अगर अंधेरा गहरी हो और
राहें गुम हो कहीं,...
- पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़े अंधेरा जो डराए तो
हौसला बुलंद कर
कदम बढ़ाओ।
मुसाफिर जो अंधेरे को आगोश में ले बढ़ता चले,
मंजिल तक पौहंच ही जाते है,
सुबह की रोशनी के हात थामे।
अगर अंधेरा गहरी हो और
राहें गुम हो कहीं,

अंधेरा जो डराए तो हौसला बुलंद कर कदम बढ़ाओ। मुसाफिर जो अंधेरे को आगोश में ले बढ़ता चले, मंजिल तक पौहंच ही जाते है, सुबह की रोशनी के हात थामे। अगर अंधेरा गहरी हो और राहें गुम हो कहीं,