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उम्मीदों को पालना सीख ---------------------------

उम्मीदों को पालना सीख
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उम्मीदों को पालना सीख,
मिला अवसर संभालना सीख ।
 परिस्थितियों अनुकूल भी होती है, प्रतिकूल भी,
 परिस्थिति अनुसार स्वयं को ठालना सीख ।।
 तेरे शरीर मे श्वासों  का बुलबुला बैचैन है
हर वक़्त क्रियाशील है,दिन या फिर रैन है ,
समय की अग्नि ,अनुभव की लकड़ियों मे,
  ठंडा होने तक, उबालना सीख ।।
जो सोचा है,मिलेगा भी ,
उम्मीद है, पंकज खिलेगा भी,
कर्म के तराजू मे परिश्रम को तोलकर,
गुणों के पिटारे को खोलना सीख ।।
समाज मे रहता है ,समाज से ही हारता है,
अंत: जिजीविषा को बार-बार मारता है ,
गूँगा बन कुछ भी जीतना सरल नहीं,
धीरे-धीरे बोलना सीख ।।
 पुष्पेन्द्र'पंकज'

©Pushpendra Pankaj
  उम्मीदों को पालना सीख।।

उम्मीदों को पालना सीख।। #कविता

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