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विज्ञान और धर्म विज्ञान को हमेशा धर्म से अलग कर कर

विज्ञान और धर्म विज्ञान को हमेशा धर्म से अलग कर कर देखा गया है इसका कारण लोगों की धर्म के प्रति गलत अवधारणा है धर्म को मात्र कर्मकांड का विषय मानना अनुचित है धर्म का कट्टरता से भी कोई संबंध नहीं है धर्म और आध्यात्म स्वयं में विज्ञान है विज्ञान का तर्क है कि सत्य की खोज करता है जबकि धर्म और अध्यात्म आ की बुनियादी मिथक पर टिकी है वास्तव में ऐसा नहीं है जगत के दो रूप हैं स्थूल और सूक्ष्म विज्ञान केवल स्थूल जगत का अध्ययन करता है और धर्म आध्यात्मिक सूक्ष्म जगत का दोनों ही सत्य है अन्वेषक हैं उधर से भी एक ही है केवल कार्यक्षेत्र अलग-अलग स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि जहां विज्ञान की खोज समाप्त होती है वहां अध्यात्मा की शुरुआत होती है विज्ञान लोक कल्याण के लिए सत्य की खोज करता है जबकि धर्म आध्यात्म आलोक कल्याण दोनों के लिए विज्ञान लोक कल्याण करेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि इसका परिणाम मनुष्य की प्रवृत्ति पर निर्भर करेगा यदि चिंतन और दिशा सही नहीं होगी तो परिणाम का विपरीत होना निश्चय है आज तो विज्ञान सर चढ़कर बोल रहा है पर समाज और दुनिया में क्या हो रहा है किसी से छिपा नहीं है यह विज्ञान और धर्म की बढ़ती दूरियों का परिणाम है एक बार गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर से मिलने पर अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा कि विज्ञान वही सब समझ सकते हैं जो सत्य के समर्पित है इस पर गुरुदेव ने कहा मानवता के बिना सत्य की खोज अधूरी है ऐसे विज्ञान दुनिया का भला नहीं कर सकता धर्म दुष्ट प्रवृत्तियों से निर्मित का मार्ग है जो मनुष्य को मानवता के पथ पर अग्रसर करता है विज्ञान और धर्म का मेल जरूरी है आइंस्टाइन को भी कहना पड़ता था धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और विज्ञान के बिना धर्म अंधा यूरोप के संदर्भ में खोज करते हुए वैज्ञानिकों द्वारा मूल कण का नाम गार्ड पोटिकल देना विज्ञान के साथ धर्म और अध्यात्म आत्मक के साथ संबंध शतक रुप से लेकर अंकित करता है

©Ek villain #Vigivigi 

#GaneshChaturthi
विज्ञान और धर्म विज्ञान को हमेशा धर्म से अलग कर कर देखा गया है इसका कारण लोगों की धर्म के प्रति गलत अवधारणा है धर्म को मात्र कर्मकांड का विषय मानना अनुचित है धर्म का कट्टरता से भी कोई संबंध नहीं है धर्म और आध्यात्म स्वयं में विज्ञान है विज्ञान का तर्क है कि सत्य की खोज करता है जबकि धर्म और अध्यात्म आ की बुनियादी मिथक पर टिकी है वास्तव में ऐसा नहीं है जगत के दो रूप हैं स्थूल और सूक्ष्म विज्ञान केवल स्थूल जगत का अध्ययन करता है और धर्म आध्यात्मिक सूक्ष्म जगत का दोनों ही सत्य है अन्वेषक हैं उधर से भी एक ही है केवल कार्यक्षेत्र अलग-अलग स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि जहां विज्ञान की खोज समाप्त होती है वहां अध्यात्मा की शुरुआत होती है विज्ञान लोक कल्याण के लिए सत्य की खोज करता है जबकि धर्म आध्यात्म आलोक कल्याण दोनों के लिए विज्ञान लोक कल्याण करेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि इसका परिणाम मनुष्य की प्रवृत्ति पर निर्भर करेगा यदि चिंतन और दिशा सही नहीं होगी तो परिणाम का विपरीत होना निश्चय है आज तो विज्ञान सर चढ़कर बोल रहा है पर समाज और दुनिया में क्या हो रहा है किसी से छिपा नहीं है यह विज्ञान और धर्म की बढ़ती दूरियों का परिणाम है एक बार गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर से मिलने पर अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा कि विज्ञान वही सब समझ सकते हैं जो सत्य के समर्पित है इस पर गुरुदेव ने कहा मानवता के बिना सत्य की खोज अधूरी है ऐसे विज्ञान दुनिया का भला नहीं कर सकता धर्म दुष्ट प्रवृत्तियों से निर्मित का मार्ग है जो मनुष्य को मानवता के पथ पर अग्रसर करता है विज्ञान और धर्म का मेल जरूरी है आइंस्टाइन को भी कहना पड़ता था धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और विज्ञान के बिना धर्म अंधा यूरोप के संदर्भ में खोज करते हुए वैज्ञानिकों द्वारा मूल कण का नाम गार्ड पोटिकल देना विज्ञान के साथ धर्म और अध्यात्म आत्मक के साथ संबंध शतक रुप से लेकर अंकित करता है

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