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निरख प्रतीची-रक्त-मेघ में अस्तप्राय रवि का मुख-मंड

निरख प्रतीची-रक्त-मेघ में अस्तप्राय रवि का मुख-मंडल,
पिघल-पिघल कर चू पड़ता है दृग से क्षुभित, विवश अंतस्तल ।

रणित विषम रागिनी मरण की आज विकट हिंसा-उत्सव में;
दबे हुए अभिशाप मनुज के लगे उदित होने फिर भव में ।

शोणित से रंग रही शुभ्र पट संस्कृति निठुर लिए करवालें,
जला रही निज सिंहपौर पर दलित-दीन की अस्थि मशालें।

घूम रही सभ्यता दानवे, 'शांति ! शांति !' करती भूतल में,
पूछे कोई, भिगो रही वह क्यों अपने विष दन्त गरल में।

टांक रही हो सुई चरम पर, शांत रहें हम, तनिक न डोलें,
यही शान्ति, गर्दन कटती हो, पर हम अपनी जीभ न खोलें ?

बोलें कुछ मत क्षुधित, रोटियां श्वान छीन खाएं यदि कर से,
यही शांति, जब वे आयें, हम निकल जाएँ चुपके निज घर से ?


part 4 😍😍😍

#allalone  Arohi singh 🌿 anjali vinod sharma khubsurat Vishakha Sharma Ashu Kumar
निरख प्रतीची-रक्त-मेघ में अस्तप्राय रवि का मुख-मंडल,
पिघल-पिघल कर चू पड़ता है दृग से क्षुभित, विवश अंतस्तल ।

रणित विषम रागिनी मरण की आज विकट हिंसा-उत्सव में;
दबे हुए अभिशाप मनुज के लगे उदित होने फिर भव में ।

शोणित से रंग रही शुभ्र पट संस्कृति निठुर लिए करवालें,
जला रही निज सिंहपौर पर दलित-दीन की अस्थि मशालें।

घूम रही सभ्यता दानवे, 'शांति ! शांति !' करती भूतल में,
पूछे कोई, भिगो रही वह क्यों अपने विष दन्त गरल में।

टांक रही हो सुई चरम पर, शांत रहें हम, तनिक न डोलें,
यही शान्ति, गर्दन कटती हो, पर हम अपनी जीभ न खोलें ?

बोलें कुछ मत क्षुधित, रोटियां श्वान छीन खाएं यदि कर से,
यही शांति, जब वे आयें, हम निकल जाएँ चुपके निज घर से ?


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