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जिसे चाहा कभी हमने अपनी चाह से बढ़कर जिसके लिए तैया

जिसे चाहा कभी हमने अपनी चाह से बढ़कर
जिसके लिए तैयार थे हर मुश्किल को गढ़कर
न देखा सवेरा कभी अंधेरे को भी रखा सरपर
अब  दिल से न हम उसको आवाज़ देते है
इसलिए नाराज़ रहते है सुनो तुमसे नाराज रहते है

©Awasthi Vinit Kumar
  Unexpected

Unexpected #Poetry

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