जिंदगी को कबाड़ कर रक्खा है, फिर सोच है,चाह है, किवाड़ करूं- घर के लिए एक परदा,एक इज्जत, पर पता ही नहीं है, कबाड़ कुछ भी हो सकता है, किवाड़,परदा, इज्जत,कोशिश, और वही हुआ है,हो रहा है, होता रहेगा, कोशिश मैं करता रहूंगा, और कबाड़ खुद होता रहूंगा। ऐसे कबाड़ का क्या कहना, कोई नहीं चुननेवाला, कोई नहीं बिननेवाला । कबाड़, तुझे गम क्या, क्यूंकर हो गम, कचरा जो तेरा अरमान हुआ जाये, कबाड़ है तू- अनचुना, अनदेखा। ©BANDHETIYA OFFICIAL #जिंदगी #कबाड़ #Luminance