।। अब धीरे धीरे यकीं होने लगा है ।। अब धीरे धीरे मुझे भी यक़ी होने लगा है, कि तुम तब थे ना मेरे ना अब हो मेरे । अब धीरे धीरे तेरा हर वादा झूठा लगने लगा है , जो तुमने मुझसे कभी किए ही न थे । अब तेरी यादें धीरे धीरे खोने लगी है , जिनमें बसी सिर्फ तुम ही तुम थे । अब वो सपने धीरे धीरे टूटने लगे हैं , जिन्हे मैंने तेरे बगैर कभी देखें ही न थे । अब ये दुनिया धीरे धीरे बिरान होने लगी है , जिनका हर एक वक्त तेरे बिना कुछ भी न था । अब तेरी आंखें दूसरे ख्वाब सजाने लगी हैं , जिनमें कभी कोई ख़्वाब दूसरे न थें । चलो बहुत हुआ मिलना अपना , जब प्यार ही न था तो क्यों होगा अपना । यकीं था कुछ इस दिल को , कि हर किसी ना किसी का कोई होता है अपना । चाहतों का सिला कुछ हुआ ही था इस कदर , कि हमें उनके सिवा कुछ दिखा ही न था । पता है मुझे, मैं न था तेरे काबिल कभी , फिर ये तेरा दिखावा सब कुछ झूठा ही तो था । अब मुकद्दर और नसीब पे धीरे धीरे यकीं होने लगा है , जिसपे हमने भरोसा कभी किया ही न था , सच तो ये मै कभी तेरे लायक ही ना था । Composed by Brijesh K Singh From the page of my diary " Life's Truth" #Thanks for everything .