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वरना कोई हमसाया न रहा, कहाँ गए वे सभी अपने, दूर

वरना कोई हमसाया न रहा, 
कहाँ गए वे सभी अपने, 
दूर दूर तक साया न रहा
जिनके थे हम इतने सगे, 
स्वार्थ के भूखे निकले सभी, 
इतने दिनों तक बाबरा मन भरमाया रहा ।

©Archana Bharti
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