"मौत की आरज़ू" I performed this piece in YQ Open mic Raipur- 4th edition (Read full poetry in caption) ये आजादी की आरजू है या आरजू है मौत की, दौड़ भाग में उलझ रही हर किताब जिंदगी की, इंसान किताब बन चुके और धूल की परत उनमें है चढ़ चुकी, पन्ने पुराने हो चले हैं तो कोई हैं कवच से घिरे हुये, (laminated pages) फटे हुये कागज अब बन चुके हैं दिल में लगे निशानी खरोचों के, मुस्कुराते अक्षरों से बनते हुये शब्द दर शब्द हैं कड़ी नये कदमों की, जिंदगी के फलसफे लिये वाक्य को वाक्य से जोड़ती अर्धविराम की मौजूदगी..