कैसे कह दूँ ? तुमको भूल जाऊँगा मैं जाकर, फ़िर से वापस लौट आऊँगा मैं मजबूरियों का "आलम" इस कदर हैं दर्द में भी फ़िर कैसे "मुस्कराऊँगा" मैं बड़ा बेरहम ज़माना, सितम ढहाता हैं बेबस करता, मुझे तुम से दूर करता हैं तुम बिन सुना यह सारा जहान मेरा हैं या कहूँ दूँ तू ही मेरा सारा "जहान" हैं कैसे कहूँ, आँसू पी कर जिंदा रहूँगा मैं या घुट-घुट कर के यूँही मर जाऊँगा मैं ♥️ Challenge-587 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।