जो खुद गुलिस्तां है, उसे गुलाब क्या दूँ, खुदा की शक्ल में आया है, महताब क्या दूँ । रहमत की बारिश है वो, इख्लास की गुज़ारिश है वो, इक़बाल बनकर आया है, कुदरत की फरमाइश है वो । जाजि़ब आश्ना को सौगात क्या दूँ, ज़ौ को इख्तियार क्या दूँ, जो खुद गुलिस्तां है, उसे गुलाब क्या दूँ । क्या दूँ