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तुम इस ख़राबे में चार छे दिन टहल गई हो सो ऐन-मुमकि

तुम इस ख़राबे में चार छे दिन टहल गई हो
सो ऐन-मुमकिन है दिल की हालत बदल गई हो

तमाम दिन इस दुआ में कटता है कुछ दिनों से
मैं जाऊँ कमरे में तो उदासी निकल गई हो

किसी के आने पे ऐसे हलचल हुई है मुझ में
ख़मोश जंगल में जैसे बंदूक़ चल गई हो

ये न हो गर मैं हिलूँ तो गिरने लगे बुरादा
दुखों की दीमक बदन की लकड़ी निगल गई हो

ये छोटे छोटे कई हवादिस जो हो रहे हैं
किसी के सर से बड़ी मुसीबत न टल गई हो

हमारा मलबा हमारे क़दमों में आ गिरा है
प्लेट में जैसे मोम-बत्ती पिघल गई हो
उमैर नजमी

©साहिर उव़ैस sahir uvaish
  #adventure हमारा मलबा हमारे क़दमों में आ गिरा है
प्लेट में जैसे मोम-बत्ती पिघल गई हो#उमैर_नजमी

#adventure हमारा मलबा हमारे क़दमों में आ गिरा है प्लेट में जैसे मोम-बत्ती पिघल गई होउमैर_नजमी

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