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समुद्र समुद्र सा बहाव जैसे, प्रगति से जुङाव हो ।

समुद्र 
समुद्र  सा बहाव जैसे,
प्रगति से जुङाव हो ।
समुद्र की उछाल जैसे,
आसमां पङाव हो ।
विस्तृत विस्तार जैसे,
 जमीन का अभाव हो।
कभी विकराल जैसे ,
चक्रवर्ती  भाव हो ।
कभी सौम्य शांत ,
जैसे लेखन का चाव हो ।
पृथ्वी से लगाव  जैसे,
जन्मों का जुङाव हो।।
समुद्र तुम चेतन रहो,
सबका यही ख्वाब हो ।।
पुष्पेन्द्र" पंकज "

©Pushpendra Pankaj
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