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हँसते-खेलतें गुज़रते थे दिन कभी वो भी क्या जमाना था

हँसते-खेलतें गुज़रते थे दिन कभी
वो भी क्या जमाना था।
ना किसी से शिकायत थी 
ना किसी को आजमाना था।।

 हो जाती थी लड़ाइयाँ  बातों-बातों में अक्सर
 मिलने को तो चाहिए बस एक बहाना था।
 सोचकर उन बातों को अब सिर्फ हँसना आता है
यही बदलतें समय की तस्वीर है मेरे दोस्त
  वक़्त शायद सबको जीना सीखा देता हैं।। bachpan ki yaadein
हँसते-खेलतें गुज़रते थे दिन कभी
वो भी क्या जमाना था।
ना किसी से शिकायत थी 
ना किसी को आजमाना था।।

 हो जाती थी लड़ाइयाँ  बातों-बातों में अक्सर
 मिलने को तो चाहिए बस एक बहाना था।
 सोचकर उन बातों को अब सिर्फ हँसना आता है
यही बदलतें समय की तस्वीर है मेरे दोस्त
  वक़्त शायद सबको जीना सीखा देता हैं।। bachpan ki yaadein
vijaypratap7818

vijay pratap

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