मिथ अब टूट रहा है, टूट रहा रिवाज है.! हम कटे समाज से, कट गए हम आप से.! अब ना कोई डर रहा, ना रहा लिहाज है.! टूट गई है बेड़ियां, घर और समाज से.! बन्धनों से मुक्त हम, उनमुक्त जीना चाहते.! ना कोई बन्दिश हो, ना कोई दबाव हो.! दूर हो बुजुर्गों से हम, बस यही चाह है.! इसीलिए पनप रहा, वृद्धाश्रम आज है.! #अजय57 #वृद्धाश्रम